Thursday, September 29, 2011

न जाने























सुबह का सूरज अब सीधे
मेरी बालकनी पर आएगा.
पर वो चितकबरे परछाई के
धब्बे अब और न बनेंगे. 

गर्म रातों की हलकी हवा में 
हिलते पत्तों की सुकून भरी
बरसात के बूँदों की सी  
आवाज़  अब न सुनाई देगी.

आसमान नापते परिंदे जो
कभी चहचहाने  सुस्ताने के
बहाने रुक जाया करते थे
बस सीधे उड़ जाया करेंगे.

अपनी मस्ती में चूर और
दुनिया से बेखबर कूदते
उछलते लंगूर अब रेलिंग 
पर और बैठा नहीं करेंगे.

रात सोने के पहले
दरवाज़ा बंद करते हुए
वो गिरे सूखे पत्ते बाहर
अब निकालने न पड़ेंगे.

कभी रेलिंग पर खड़ा देख
मुझे, डाल से डाल फुदकते
उस घोंसले के काले परिंदे दो
अब और शोर नहीं करंगे.

सड़क किनारे का वो पेड़ जो
मेरी बरसाती तक पहुँचता था
आज काट दिया किसीने, जाने
वो परिंदे अब कहाँ जा रहेंगे.



1 comment:

  1. nice.. hope u at least took some photos of the tree from earlier...

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