Thursday, December 15, 2011

बात का स्वाद

इक बात का टुकडा चखके, आपने तश्तरी पे रख छोड़ी थी.
देख के मैंने भी ज़रा चखी, तो जाना यूँ क्यों छोड़ रखी थी.
वो बात ठीक से पकी नहीं थी, उसे ज़रा सी और आँच दें.
मैं चंद लफ्ज़ निकालूं, थोड़े आप डालो तो बात का स्वाद बढ़े.

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