Thursday, May 24, 2012

उर्दू

बचपन में अंग्रेज़ी ओ हिंदी
के अल्फाज़ों के बीच अचानक
जब रेडियो पे कभी ग़ज़ल
सुन लिया करते थे उर्दू में,
तो यूँ लगता था के अचानक
घाँस के मैदान पे चलते चलते
किसी पत्तेदार दरख़्त से मुखातिब हुए.
आगे भले ही चल पड़ना हो,
बस चंद लम्हे तो ठहर गुज़र लें
दरख़्त-ए-उर्दू  के ठन्डे साए में.

Thursday, May 10, 2012

नामुराद

सुबह के नाश्ते में आज
चाय बिस्कुट के साथ
भोर कि धुप भी चखी थी.
सो दिन आज का पूरा 
ताज़ा ताज़ा गुज़रना था,
पर गुज़रा नहीं.

नामुराद ये खाँसी न जाने
कब पीछा छोड़ेगी ?

Tuesday, May 8, 2012

मन

मन पँखों पे सवार
उड़ा है खोज में 
के मिले कहीं तो 
उतरे उस शाँत डाल पे.

Monday, May 7, 2012

तुम्हारा नाम ही सही

रात छत पे बैठ
चाँद की रौशनी में
आस्मां की स्याही में
अपनी कलम डुबोता हूँ.
उस पुरानी डायरी में फिर
तरह तरह से बनाकर
तुम्हारा नाम लिखता हूँ.
कोशिश करता हूँ
किसी में तुम्हारी मासूमियत,
किसी में शरारत
किसी में गुस्सा तो,
किसी में तुम्हारी मुस्कुराहट,
शायद झलक जाये.
वक़्त बीतता पता नहीं चलता.

तुम साथ न हो तो क्या,
तुम्हारा नाम ही सही.

Sunday, May 6, 2012

सन्नाटे को शाँत करूँ

ख़याल इक दूजे से टकराने लगे हैं,
सन्नाटा आज फिर शोर कर रहा है .
अब सब मुझसे पूछने लगे हैं,
अर्सा हुआ, तू लिख क्यों नहीं रहा है?

शायद कुछ ज़हन को कचोट रहा था,
जाने उसे कैसे और कहाँ जा ढूँढूं ?
खैर, आज पर चुप्पी को ज़रा तोड़, 
कमस्कम, उस सन्नाटे को शाँत करूँ.


112 days- That's how long it had been since I'd updated my blog or written anything for that matter. So, here's breaking the dry spell and hoping that today's sprinkles go on to be the monsoons. Feels good to be back.