Monday, July 30, 2012

सन्ताराश

ज़हन में एक अर्से से
रोज़ थोड़ा थोड़ा कर
एक ख़याल तराश रहा था
कुछ बातों के हथौड़े बना,
चन्द लफ़्ज़ों की छैनी पर,
टुक-टुक ठोकता रहता था।

एक चोट हथौड़े की आज
मग़र ग़लत पड़ गयी,
छैनी हाथ से फिसल गयी,
और अनचाही चिंगारियों
से घिरा वो  ख़याल फिर,
झुलस के टूट गया।

अब जाने फिर कब वो
छैनी हथौड़ी हाथ लगें,
और फिर मैं ख़याल तराशूं।



Friday, July 27, 2012

मुर्दा पल

रात सरकती गुज़र रही थी,
वक़्त रेंगता कट रहा था।
पसीने से भीगे चेहरे पे उसके,
बूँद भर खून का टपक रहा था।

कहा मार आया हूँ एक पल वहाँ,
अब रूह उसकी पीछा कर रही है।
ज़रा दम भरलूँ ठहर के कहीं पर,
रूह सर चढ़े इस ताक़ में बैठी है।

भाग वो रहा था, लेकिन बेरफ्तार,
धौंकनी सा सीना साँस से ख़ाली था।
घुटी आँख में टपका खून उतर पड़ा,
मुर्दा पल वो आख़िर सर चढ़ गया था।

Thursday, July 26, 2012

मैं आप हम

कभी इक मैं था,
मैं की आदत ही सी थी।
फिर मैं और आप हुए,
मैं की आदत छूटने लगी।
जाने कब आप मैं हम हो गए,
आदत पड़ते भी देर न लगी।

कुछ रोज़ पहले मगर,
हम फिर मैं ही हो गया।
कोशिश करते भी मगर, अब 
मैं की आदत नहीं पड़ रही।