Wednesday, July 24, 2013

साँझी भोर

भोर का आसमान आज
देर साँझ का सा लगता था,
कुछ वैसा ही
जैसा कल श्याम को देखा था
रात जागते कटी थी पूरी और
सुबह यूँ लगा था जैसे वक़्त
रात भर थम गया था-
थक के चलते-चलते शायद
कहीं सो गया था.
मैं घर से निकला था जब आज,
वक़्त ने भी तभी
आँखें खोली थी अपनी
और सुबह आज की
उसी साँझ सी लगी थी
जो कल
घर लौटने से पहले देखी थी.

Sunday, July 21, 2013

नई बात


कुछ अर्से से टटोल रहा हूँ 
ज़हन की संकरी गलियों को। 
कभी रख के भूल गया हूँ 
या छुपे बैठे हों कोनों में वो 
ख़याल जिन्हें शायद ज़ुबाँ
ढाल ले अल्फाज़ों में,
भले छोटी सी ही सही,
पर आज 
इक नई बात कहूँ तुमसे।

Wednesday, July 17, 2013

गोद

भीगा थका, बरसात में चलता घर पहुँचा 
नींद छाता लिए दरवाज़े पर खड़ी थी।
"थक गए होगे, आओ अपनी गोद में सुला दूँ।"