Friday, July 27, 2012

मुर्दा पल

रात सरकती गुज़र रही थी,
वक़्त रेंगता कट रहा था।
पसीने से भीगे चेहरे पे उसके,
बूँद भर खून का टपक रहा था।

कहा मार आया हूँ एक पल वहाँ,
अब रूह उसकी पीछा कर रही है।
ज़रा दम भरलूँ ठहर के कहीं पर,
रूह सर चढ़े इस ताक़ में बैठी है।

भाग वो रहा था, लेकिन बेरफ्तार,
धौंकनी सा सीना साँस से ख़ाली था।
घुटी आँख में टपका खून उतर पड़ा,
मुर्दा पल वो आख़िर सर चढ़ गया था।

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