Thursday, April 16, 2015

बेनींद

बंद पलकों से भी देख लेता हूँ खुदको
शीशे सी साफ़ तुम्हारी आँखों में रोज़।
अँधेरे में अकेले भीगता है चेहरा मेरा
सिसकता बेनींद इक ख़्वाब भर ही है। 

Wednesday, April 15, 2015

वायलिन

ग़मगीन चंद नोट्स वायलिन के से
सीने की रिसती थकी घुटतीं आँहें हैं

तुम ही बताओ जाना के कैसे भूलूँ।

Bleeding, Tired and Breathless Sighs 
Those Plaintive strains of the Violin

You tell me Dear, How do I Forget?

Monday, April 13, 2015

नज़र अंदाज़

बहार आता है अंदर भी हर कभी कभी
पर नज़र अंदाज़ ही होकर रह जाता है

और आती भी तो नहीं तुम आज कल।

The Within  Emerges now & then, but Ignored,
You too, no longer Visit Anymore, as You Did.

Saturday, April 4, 2015

कहो कैसे?

आसमान जैसे था ही नहीं आज रात
अपनी ही रौशनी में तैर रहा था चाँद

तुम्हारा रौशन चेहरा, कहो कैसे भूलूँ?

It Floated in it's own Aura, The Moon; was no Sky,
How am I to Forget your Glowing Visage, Tell Me?

Friday, April 3, 2015

हर लम्हा इक

भीड़ में भी अकेला ही लगता है,
मुर्दा उम्मीद में जलता रहता हूँ,

ज़हन से सवाल नहीं बुझता है
मिले इक ख़ता ढूँढता रहता हूँ,

पल भर को भी सुकूं न रहता है
ज़िंदा यादें काट काट फेंकता हूँ,

सूख कर आँखे नमक हो गईं हैं
आजाए नींद बस राह तकता हूँ,

साँसे तो पहले ही सिक्कों से हैं
बस ख़त्म हो सो खर्च करता हूँ,

वीरां सीने में बस चंद धड़कनें हैं
थम जाएँ बस इंतज़ार करता हूँ,

हर लम्हा इक मौत जीता हूँ मैं
हर लम्हा इक ज़िंदगी मरता हूँ।