Thursday, April 16, 2015

बेनींद

बंद पलकों से भी देख लेता हूँ खुदको
शीशे सी साफ़ तुम्हारी आँखों में रोज़।
अँधेरे में अकेले भीगता है चेहरा मेरा
सिसकता बेनींद इक ख़्वाब भर ही है। 

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