Monday, April 28, 2014
दस्तक
सुन्न रह गया है कमरा
माज़ी की दस्तक भर है
दूर बहुत, पर तुम ही हो।
Wednesday, April 23, 2014
वादा
कुछ ज़र्द सा था पर रौशन था
झील के किनारे, बेंच पर चाँद
रात, फिर ख़्वाब में मिलते हैं।
Friday, April 18, 2014
पट्टी
ज़िन्दगी से भागते हैं किताबों में, पर इस बार
लफ़्ज़ों से टकरा रहे हैं, आँखों पर पट्टी बंधी है
ढूँढता जा रहा हूँ बस तुम्हे, मिलोगे न मिलोगे।
Tuesday, April 15, 2014
छुट्टी
दिन बड़ा खुश सा, रास्ते भी पुकार रहे थे
मौसम निकला था ख़ुद ही छुट्टी मनाने
बड़ी प्यारी लगती हो नींद में मुस्कुराती।
Thursday, April 10, 2014
कहो तो
कब तक थमी रहती
साँसें थीं, सो छूट गईं
कहो तो, और न लिखूँ?
Monday, April 7, 2014
फुरसत
सफ़र कुछ लम्बा सा तय हो आया है धुप में
देर चलने के बाद अब कुछ पेड़ नज़र आए हैं
इक अर्से बाद की फुरसत है, कहो कैसे ग़ुज़ारें?
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