ख़रीदी थी जितनी साँसें, खर्च होने को हैं सब
झपकियाँ कब की ख़त्म, जेबें भी ख़ाली ही हैं
कहो क्या करूँ जाना, न वजह थी, न वजह है।
Bought Breaths almost all Spent, No Sleep and Empty Pockets,
What am I to do Dear?; Was No Reason, No Reason Remains.
झपकियाँ कब की ख़त्म, जेबें भी ख़ाली ही हैं
कहो क्या करूँ जाना, न वजह थी, न वजह है।
Bought Breaths almost all Spent, No Sleep and Empty Pockets,
What am I to do Dear?; Was No Reason, No Reason Remains.
No comments:
Post a Comment