Sunday, March 5, 2017

पोशीदा

सतह अब भी काँच सी सपाट है
गहराइयाँ भी उस रोज़ से, बाँझ

पोशीदा लहरों सी हैं कुछ यादें।

Surface still, as still as glass
Depths since, remain barren


Memories're invisible ripples.

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