Sunday, November 25, 2012

ख्वाब का पेड़

रात एक बार इक ख्वाब से गुज़रते 
मैदान में उस ख्वाब का बीज बोया था।
अगली कई रातों तक ख्वाब बरसते रहे,
आज यूँ ही टहलते-टहलते मैदान में 
इक नया पेड़ दिखा, जिसे पहले न देखा था।
सोचा दम भर इस नई छाँव में बैठ फिर 
घर की ओर मुड़ जाऊंगा।
कब आँख लगी, पता ही न चला।

ख्वाब में देखा मेरे बीज का पेड़ बन गया है,
और उसकी छाँव में लेटे,
मैं फिर ख्वाब देख रहा हूँ। 

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