Friday, February 1, 2013

संतरे की डली सा

कच्ची रात का उगता
संतरे की डली सा वो
आधा चाँद।
आओ तुम्हे काँधों पे उठा लूँ
तुम चुपके से चुरा लेना उसे
रात की हथेली से।
आधी पहले तुम खा लेना
बाकी आधी मैं खिला दूँगा।
उठा लूँगा काँधों पे एक बार फिर,
स्याह रात के आसमाँ के सामने
तुम्हारा ये मुस्कुराता चेहरा
के संतरे की डली सा वो
आधा चाँद भी
पूरा हुआ नज़र आएगा।

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