बचपन में अंग्रेज़ी ओ हिंदी
के अल्फाज़ों के बीच अचानक
जब रेडियो पे कभी ग़ज़ल
सुन लिया करते थे उर्दू में,
तो यूँ लगता था के अचानक
घाँस के मैदान पे चलते चलते
किसी पत्तेदार दरख़्त से मुखातिब हुए.
आगे भले ही चल पड़ना हो,
बस चंद लम्हे तो ठहर गुज़र लें
दरख़्त-ए-उर्दू के ठन्डे साए में.