चाँद की रौशनी में
आस्मां की स्याही में
अपनी कलम डुबोता हूँ.
उस पुरानी डायरी में फिर
तरह तरह से बनाकर
तुम्हारा नाम लिखता हूँ.
कोशिश करता हूँ
किसी में तुम्हारी मासूमियत,
किसी में शरारत
किसी में गुस्सा तो,
किसी में तुम्हारी मुस्कुराहट,
शायद झलक जाये.
वक़्त बीतता पता नहीं चलता.
तुम साथ न हो तो क्या,
तुम्हारा नाम ही सही.
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