Sunday, July 21, 2013

नई बात


कुछ अर्से से टटोल रहा हूँ 
ज़हन की संकरी गलियों को। 
कभी रख के भूल गया हूँ 
या छुपे बैठे हों कोनों में वो 
ख़याल जिन्हें शायद ज़ुबाँ
ढाल ले अल्फाज़ों में,
भले छोटी सी ही सही,
पर आज 
इक नई बात कहूँ तुमसे।

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