Monday, June 9, 2014
ज़हीन
अलेहदा अकेले भटकते से खोए से लफ्ज़
कितने ही मानी निकलते हैं जो इक्कठे हों
ज़हीन क़लम है, बड़ा बेशुमार लिखती हो।
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