Sunday, October 30, 2016

पढ़ी न पढ़ी

ख़ामोशी से टीस उठती है, कहें तो फाँस सी चुभती है
हर सूरत में जब दर्द होना हो तो फिर कह कर ही सही

दिवाली की मुबारक़बाद भेजी थी, तुमने पढ़ी न पढ़ी।

Remaining silent stings, expressing pricks like a thorn
If it is to hurt either ways, better hurt when expressed

Wished You for Diwali, wonder you read or ignored it.

Sunday, October 9, 2016

उम्र

सोच से शुरू सच्चाई पर ख़त्म
या ख़त्म आख़िरी साँस के संग

उम्र कितनी होती है उम्मीद की?

Begins as thought, ends at truth,
Or does it end at the last breath;

How long lasts the life of Hope?

Saturday, October 8, 2016

चुभन

आईने के टुकड़ों सी नुकीली
आँखों में चुभते नहीं थकती

न तो आँसू आते हैं न नींद।

As sharp as the shards of a mirror
Pricking at the eyes, without tiring

Neither relieved by tears nor sleep.