Thursday, March 1, 2018

मिली

तन का ताना, मन का बाना बुनी कबीर चदरिया
मैं बानी का ख़ुसरौ बनूँ, वो बनी है मोरी औलिया

हर रोज ही खेरूँ होरी, मिली मोरी रंगरेज मिली।


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