छोर पे स्थित तटस्थ निशब्द स्तब्ध सा
मैंने अपने प्रतिबिम्ब को मुझसे पृथक हो
निरंतर निर्मम प्रवाह में बह जाते देखा।
ठीक उसी रूप से जैसे अपनी छाया को
प्रातः उषाकिरण में रिक्त धरा पटल से
निरंतर निर्मम प्रवाह में उड़ जाते देखा।
अब केवल इस नश्वर शरीर को ढोए
थकी आत्मा जीवन छोर पर खड़ी है।
अब जाने कब उसे शरीर से पृथक हो
ये छोर छोड़े अनंत में विलीन देखूंगा।
No comments:
Post a Comment