Wednesday, January 30, 2013

कम कहा करता हूँ

वो अक्सर कहती हैं,
अक्सर क्या, हमेशा कहती हैं
के मैं बड़ा कम कहता हूँ।

पर लहज़ा शिकायती नहीं होता
उल्टे बड़ी दिल्लगी से कहती हैं-
"भई  ये हमारे, बड़ा ही कम कहते हैं।"
कोई ग़र वजह पूछ ले तो
जवाब उनके मूड के चलते
कभी कुछ, कभी कुछ होता है।

शरारत सूझ रही हो तो-
"मैं कुछ कहने दूँ , तब न।"
जो चिड़चिड़ी सी हो तो-
"ये न समझना के मैं कहने नहीं देती।"
कुछ उदास सी हो ग़र-
"क्या पता, कभी कुछ कहा नहीं।"
और खुद न ख्वास्ता जो ग़ुस्से में हों-
"न कहें तो न सही, मेरी बला से।"

खैर, ये तमाम जवादात तो
वो दिया करती थी, औरों को।
मैंने अक्सर ग़ोर किया था के
ये सवाल वो खुद भी
मुझसे करना चाहती थी।
और आख़िर आज कर ही लिया-
"अब बताओ भी, इतना कम क्यों कहते हो?"

ज़रा मुस्कुराते, उन पूछती आँखों में
देखते हुए मैंने कहा-
"आपके वो जवाब जो सुनने होते हैं,
बस, इसीलिए कम कहा करता हूँ।"

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