Tuesday, April 2, 2013

आखिरी

गुज़रती रात को थाम लिया था
अपने लिपटे हुए जिस्मों के बीच,
सबसे दूर छिपकर सावन की सीली,
अलसाई सी चाँदनी में।
भीगी घाँस की महक में
तेज़ साँसें घुल गईं थीं,
बदन वो ज़मीन से सब्ज़,
मटियाले से हो गए थे।
हथेलियाँ चिपक सी
उंगलियाँ साथ बुन सी गईं थीं,
आँखें बोझल, नम, छलक गईं थीं,
उदास वो चेहरे भिगोते हुए।

आखिरी रात थी वो उनकी,
बस, आखिरी कुछ लम्हे।


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