Saturday, September 21, 2013
दस्तक
डाकिये की साइकल की घंटी का हुआ करता था कभी
फिर फोन, अब मोबाइल की घंटी का इंतज़ार होता है
अर्सा हो गया तुम्हे, दरवाज़े पर दस्तक दिए आए हुए।
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