इक अर्सा हुआ आज सियाही अब कुछ भी न रही
क़ाग़ज़ पर क़लम के पोशीदा निशान होते जाते है
ज़रा सा छूँ कर देखना, उँगलियाँ पढ़ लेंगीं ज़ख्म।
There's been no Ink, since an age now,
Pen keeps invisibly marking the Paper,
Touch and Fingers'll read the wounds.
क़ाग़ज़ पर क़लम के पोशीदा निशान होते जाते है
ज़रा सा छूँ कर देखना, उँगलियाँ पढ़ लेंगीं ज़ख्म।
There's been no Ink, since an age now,
Pen keeps invisibly marking the Paper,
Touch and Fingers'll read the wounds.
No comments:
Post a Comment