Wednesday, September 7, 2011

काश, के कल छुट्टी होती

कल की सुबह कुछ,
दोपहर से शुरू होती
और, नाश्ते की जगह,
सब्ज़ी, दाल, रोटी होती.
एक किताब और कुछ
ग़ज़लों के साथ हमारी,
श्याम की शुरुआत होती.
दोस्तों के गप्पों के साथ,
प्याली भरके चाय होती.
फिर तैयार हो निकलते,
रात की कहीं दावत होती.
रात को कुछ देर लौट के
फिर रजाई से गुफ्तगू होती.

खैर, ये सब ख़याल भर ही,
काश, के कल छुट्टी होती.


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