दो लब यूँ थके से
जुड़ते न बनते थे.
वो पलकें बोझल
खुलने से नाराज़ थीं.
ज़ुल्फों की उलझी गांठें
सुलझाती शोख उंगलियाँ.
माथे पर परेशान करती
एक हलकी सी शिकन
और गालों पे चुपके से
सरकती एक बरसात
की मद्धम सी ठंडी धार.
बरसात,
सच मुझे बहुत पसंद है.
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