Sunday, September 11, 2011

क्यों

क्यों घुट रहा हूँ
क्यों मैं बंधा सा हूँ
कुछ शायद कहूँ
क्यों गूंगा सा हूँ.

कहूँ तो किस से कहूँ
भीड़ में अकेला सा हूँ
मैं चिल्ला के क्यों थकूं 
न होगी कहीं एक भी चूं.

सबके लिए मैं  गूंगा हूँ
पर तुमसे एक बात  कहूँ
मैं शायद ऐसा घुटता हूँ,
के खुदकी मैं ही सुनता हूँ.

No comments:

Post a Comment