क्यों घुट रहा हूँ
क्यों मैं बंधा सा हूँ
कुछ शायद कहूँ
क्यों गूंगा सा हूँ.
कहूँ तो किस से कहूँ
भीड़ में अकेला सा हूँ
मैं चिल्ला के क्यों थकूं
न होगी कहीं एक भी चूं.
सबके लिए मैं गूंगा हूँ
पर तुमसे एक बात कहूँ
मैं शायद ऐसा घुटता हूँ,
के खुदकी मैं ही सुनता हूँ.
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