Monday, September 5, 2011

चुप्पी का शोर

एक रोज़ के लिए
आज आवाज़ मेरी,
मुझे छोड़ गयी.

पल भर को रुक
सोचा मैंने, क्या ये
चुप्पी बर्दाश्त होगी.

दिन ढलने को है, जो
बर्दाश्त नहीं होता वो
इस चुप्पी का शोर है.

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