धुंधली कायनात के
कोहरे के परदे के पीछे
लुक्का छिपी खेलती
उस नम से सूरज की
शरारती ओसीली रौशनी
रह रह के मुझे छेड़ती है.
"क्या अल्साए जाते हैं,
माना मौसम का असर है.
सुबह भले कुछ सुस्त सही,
बस एक चाय की क़सर है."
*This is for yesterday as I couldn't post owing to unavoidable circumstances.
No comments:
Post a Comment