Friday, September 2, 2011

सपने की रसोई

हर रोज़ से कुछ अलेहदा आज,
सुबह नींद बड़ी खुश गवार खुली.
चेहरे पर हलकी सी मुस्कान थी,
ज़ुबां पर बचपन के इतवार की
खुशबूदार दोपहर का ज़ायका था.
पिघलती सुबह की नींद की एक 
आखरी जम्हाई लेते याद आया,
रात सपने की रसोई में माँ थी.

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