आँखें मूँदे,
होंठों पर चुप्पी साधे,
हाथ बाजू में बाँधे,
खुद को एक पत्ता समझे मैं,
चौराहे सी आँधी में खड़ा हूँ।
कब कोई हवा किस दिशा की
पकड़े अपने साथ ले जाये,
छोड़ दे कहीं और।
अब बर्दाश्त नहीं होता
यहाँ बेवजह जुड़े रहना
इस ठहरी सी ज़िन्दगी से।
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