Wednesday, July 24, 2013

साँझी भोर

भोर का आसमान आज
देर साँझ का सा लगता था,
कुछ वैसा ही
जैसा कल श्याम को देखा था
रात जागते कटी थी पूरी और
सुबह यूँ लगा था जैसे वक़्त
रात भर थम गया था-
थक के चलते-चलते शायद
कहीं सो गया था.
मैं घर से निकला था जब आज,
वक़्त ने भी तभी
आँखें खोली थी अपनी
और सुबह आज की
उसी साँझ सी लगी थी
जो कल
घर लौटने से पहले देखी थी.

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