Tuesday, February 18, 2014

इंतज़ार

क्यों भटक रहे थे क़दम कुछ बेमानी से
किस मंज़िल को जाने उनका इंतज़ार था

आज सो जाने दो अपनी ज़ुल्फ़ों के साये में। 

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