मकान जो मेरा उफ़क़ पर नज़र आता था हर रोज़ एक सा
अब अलग सा क़रीब सा दीखता है, रहने को कहता है दिल
घर के दरवाज़े पर हमेशा, यूँ ही मिला करो मुस्कुराते हुए।
अब अलग सा क़रीब सा दीखता है, रहने को कहता है दिल
घर के दरवाज़े पर हमेशा, यूँ ही मिला करो मुस्कुराते हुए।
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