माज़ी ठुड्डे मार रहा है, रूह अब छलके कब छलके
है ज़हन महरूम मगर आज लफ्ज़ ओ अल्फ़ाज़ों से
याद हैं वो रातें जब ख़ामोश ही बातें किया करते थे ?
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The past keeps kicking, the spirit just might brim over,
Consciousness however, is bereft of every word today,
Remember, the nights when we'd converse in silences?
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