Thursday, February 25, 2016

ज़िक्र

लहज़ा तो है खुद का अपना, कश्मकश है मग़र
उस ही से वफ़ा रखूँ के, बदल दूँ यूँ के वो ख़ुश हो

तुम कभी ज़िक्र भी नहीं करती मेरे लिखने का।

Do I be My Way or Change to Please?
You barely ever mention what I Write.

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