Friday, November 11, 2011

कल की बात

कबसे बैठा हूँ मेज़ पर
डायरी सामने खुली पड़ी है
पन्ना दो साल पुराना है
पर बात जो वो कहता है
कल ही की तो लगती है.
वो कहता है के तुम अब
मुझसे और न मिलोगे, तुम
मुझसे और कुछ कहोगे नहीं
न और हँसोगे मुझ पर और
न कोरे गुस्से से डाँटा करोगे.
रह-रह के यूँ लगता है बस
अब चाय की प्याली लिए
कन्धे पे हाथ रख कहोगी-
"चाय और गरम नहीं करुँगी!"

हाँ, तुम्हे गुज़रे,
आज पूरे दो साल हो गए.
पर बात अब भी
वो कल ही की लगती है.

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