कबसे बैठा हूँ मेज़ पर
डायरी सामने खुली पड़ी है
पन्ना दो साल पुराना है
पर बात जो वो कहता है
कल ही की तो लगती है.
वो कहता है के तुम अब
मुझसे और न मिलोगे, तुम
मुझसे और कुछ कहोगे नहीं
न और हँसोगे मुझ पर और
न कोरे गुस्से से डाँटा करोगे.
रह-रह के यूँ लगता है बस
अब चाय की प्याली लिए
कन्धे पे हाथ रख कहोगी-
"चाय और गरम नहीं करुँगी!"
हाँ, तुम्हे गुज़रे,
आज पूरे दो साल हो गए.
पर बात अब भी
वो कल ही की लगती है.
डायरी सामने खुली पड़ी है
पन्ना दो साल पुराना है
पर बात जो वो कहता है
कल ही की तो लगती है.
वो कहता है के तुम अब
मुझसे और न मिलोगे, तुम
मुझसे और कुछ कहोगे नहीं
न और हँसोगे मुझ पर और
न कोरे गुस्से से डाँटा करोगे.
रह-रह के यूँ लगता है बस
अब चाय की प्याली लिए
कन्धे पे हाथ रख कहोगी-
"चाय और गरम नहीं करुँगी!"
हाँ, तुम्हे गुज़रे,
आज पूरे दो साल हो गए.
पर बात अब भी
वो कल ही की लगती है.
No comments:
Post a Comment