चलो चंद बातें करें
बैठ चाँद के नीचे,
काँच के झूमर वाले
बंद कमरे के पीछे।
ज़रा तुक्के लगाएँ
के कमरे में क्या है,
झूमर तो सुना है
क्या कुछ और नया है?
कहते हैं वो कमरा कभी
घर का मेहमानखाना था,
कभी एक नवाब पधारे थे
झूमर का तब से लगाना था।
मखमली कालीन हों,
परदे जैसे, रेशम के थान
शायद चाँदी का इक टी-सेट,
और पीतल का पानदान।
बस एक ही रात हुई थी
उन नवाब को रुके वहाँ
सुबह बंद कमरे ही से वो
जाने गायब हुए थे कहाँ।
हवेली की उम्र बहुत थी,
बात भी पुरानी थी मगर
नवाब का आज तक भी
न ठिकाना, न कोई खबर।
जाने क्यों वो कमरा
आज भी बंद रहता है.
कमरा मनहूस है, ऐसा
रामू काका कहता है।
इसमें कितना सही और
जाने कितनी कल्पना है
क्या इक काला सच या
बस लोगों का बचपना है।
अब खैर, वो जो भी है सो है,
आओ हम बैठें चाँद के नीचे
और चंद बातें करें काँच के उस
झूमर वाले बंद कमरे के पीछे।
बैठ चाँद के नीचे,
काँच के झूमर वाले
बंद कमरे के पीछे।
ज़रा तुक्के लगाएँ
के कमरे में क्या है,
झूमर तो सुना है
क्या कुछ और नया है?
कहते हैं वो कमरा कभी
घर का मेहमानखाना था,
कभी एक नवाब पधारे थे
झूमर का तब से लगाना था।
मखमली कालीन हों,
परदे जैसे, रेशम के थान
शायद चाँदी का इक टी-सेट,
और पीतल का पानदान।
बस एक ही रात हुई थी
उन नवाब को रुके वहाँ
सुबह बंद कमरे ही से वो
जाने गायब हुए थे कहाँ।
हवेली की उम्र बहुत थी,
बात भी पुरानी थी मगर
नवाब का आज तक भी
न ठिकाना, न कोई खबर।
जाने क्यों वो कमरा
आज भी बंद रहता है.
कमरा मनहूस है, ऐसा
रामू काका कहता है।
इसमें कितना सही और
जाने कितनी कल्पना है
क्या इक काला सच या
बस लोगों का बचपना है।
अब खैर, वो जो भी है सो है,
आओ हम बैठें चाँद के नीचे
और चंद बातें करें काँच के उस
झूमर वाले बंद कमरे के पीछे।
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