पिछले कुछ इतवारों जैसे
इस इतवार की शुरुआत भी
लगभग दोपहर से हुई है.
मेरी बेवक्ती नींद लेकिन
कुछ और सोना चाहती है.
इसके भी बड़े नखरे हैं.
रात देर से आना और
देर सुबह तक न जाना.
बिलकुल उस माशूका सी
जिससे न निभाया जाये
न जिसको छोड़ा ही जाये.
कमबख्त कुछ यूँ बिगड़ी है
लाख़ सुधारते नहीं सुधरती.
अब जो ग़लती की है सो
भुगतना भी खुद ही को है.
पर इतवार है आज आखिर,
तो इसमें हर्ज़ ही क्या है के
वो कुछ और सोना चाहती है.
इस इतवार की शुरुआत भी
लगभग दोपहर से हुई है.
मेरी बेवक्ती नींद लेकिन
कुछ और सोना चाहती है.
इसके भी बड़े नखरे हैं.
रात देर से आना और
देर सुबह तक न जाना.
बिलकुल उस माशूका सी
जिससे न निभाया जाये
न जिसको छोड़ा ही जाये.
कमबख्त कुछ यूँ बिगड़ी है
लाख़ सुधारते नहीं सुधरती.
अब जो ग़लती की है सो
भुगतना भी खुद ही को है.
पर इतवार है आज आखिर,
तो इसमें हर्ज़ ही क्या है के
वो कुछ और सोना चाहती है.
No comments:
Post a Comment