Saturday, October 22, 2011

चमक

देर एक भीगी रात को
घर पहुँचने की जल्दी में
मैं तेज़ चला जा रहा था
जब सड़क पर एक चमक
देख कर रुक सा गया.
कुछ दूर, ढलान का कन्धा
रुक रुक कर चमकता था.
कुछ देर भले और हो जाए
ये राज़ ज़रूर जानना था.
कदम खुद उस ओर बढ़े
जल्द मैं वहां आ पहुंचा.
उस सड़क पर वहां एक
बड़ा गड्ढा सा था जिसमे
श्याम की बारिश के साथ
धुल छलक के रात का वो
चमकता चाँद उतर आया था.

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