देर एक भीगी रात को
घर पहुँचने की जल्दी में
मैं तेज़ चला जा रहा था
जब सड़क पर एक चमक
देख कर रुक सा गया.
कुछ दूर, ढलान का कन्धा
रुक रुक कर चमकता था.
कुछ देर भले और हो जाए
ये राज़ ज़रूर जानना था.
कदम खुद उस ओर बढ़े
जल्द मैं वहां आ पहुंचा.
उस सड़क पर वहां एक
बड़ा गड्ढा सा था जिसमे
श्याम की बारिश के साथ
धुल छलक के रात का वो
चमकता चाँद उतर आया था.
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