Sunday, November 13, 2011

जाने कौन था

वो जाने कौन था जो आकर
ग़म कुछ ज़रा कम कर गया.
गया तो, एक सूखा आँसू भी
यादों की मिट्टी नम कर गया.

उस मिट्टी से जो खुशबु उठे वो
आहें और गहरी कर देती है.
जो चौखट पीछे छोड़ गया  वो
निगाहें वहीँ ठहरी कर देती है.

निगाहें भी ठहर-ठहर अब
कुछ पथराने सी लगी हैं.
सच्चाईयां मानने को सोच भी
कुछ कतराने सी लगी है.

कहीं आ ही जाए, इंतज़ार में
कुछ और किया नहीं जाता.
इक ग़लत या खुश फहमी है
और फैसला लिया नहीं जाता.

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