Monday, August 15, 2011

परोसा है...

एक थाली सजाकर आज,
अपने कुछ ख़्वाब परोसे हैं.
साथ कटोरी में कुछ ज़रा,
अरमाँ भी दाल रखे हैं.
आरज़ू भर गिलास साथ में,
थाली के बगल रख छोड़ी है.
और इक छोटी तश्तरी में थोड़ा,
शरारत का अचार रखा है.

खुशगवार मन बनाके,
इत्मिनान से बैठ कर,
एक एक कर सब चखना.
जो कुछ अच्छा लगे तो,
जी भरके लुत्फ़ उठाना.

हाथ मूंह धोकर फिर, एक
छोटे सवाल का जवाब देना.
जो ग़र आज का परोसा,
आपको कुछ पसंद सा आया हो,
तो क्या इजाज़त है मुझे,
के उम्र भर यूँ ही,
आपको परोसता रहूँ?


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