Tuesday, August 9, 2011

तोहफ़ा

कुछ टूटी ग़ज़लें समेटीं हैं,
चंद बिखरे नगमे बटोरे हैं। 

थोड़ी पुरानी नज़्में निकाली हैं,
और बेतुके मिस्रे टटोले हैं। 

इस सोच में ये दिन बीता है,
यूँ रात भी बीतने वाली है। 

कल तोहफ़ा इक नज़र करना है,
शहर से आप जो गुजरने वाली हैं।    

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