कुछ चन्द ज़रा थोड़े
लावारिस से ख़याल,
आज राह चलते
अचानक से मिल गए.
कुछ ने कहा-
"बड़े उक्ता से गए हैं,
साथ ले लो हमें."
चन्द बोले-
"कुछ तो अब,
नया सा चाहिए."
ज़रा ने पुछा-
"क्यों भाई साहब,
आप क्या कहते हैं?"
और बाकी थोड़े
उनके साथ खड़े,
सर हिला रहे थे.
अचानक फिर,
हॉर्न की आवाज़ हुई,
और नज़र
हरी बत्ती पर पड़ी.
हफ्ते का बुध,
और दफ्तर का
बेमाना सा एक,
थका लम्बा दिन था.
खुद से ऐसा कुछ,
अलग धलग सा
के अपने ही ख़याल,
अपनी पहचान बताते थे.
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