Thursday, September 22, 2011

बस एक चाय की क़सर

धुंधली कायनात के
कोहरे के परदे के पीछे
लुक्का छिपी खेलती
उस नम से सूरज की
शरारती ओसीली रौशनी
रह रह के मुझे छेड़ती है.

"क्या अल्साए जाते हैं,
माना मौसम का असर है.
सुबह भले कुछ सुस्त सही,
बस एक चाय की क़सर है."

*This is for yesterday as I couldn't post owing to unavoidable circumstances.

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