Wednesday, December 27, 2017
Tuesday, December 26, 2017
Monday, December 25, 2017
हाथ
बड़ा सोचते हैं जब भी छूते हैं
थामते, सहलाते, कस लेते हैं
शक़्श ही तो हैं हाथ तुम्हारे!
They think a lot as they touch
Holding, caressing, gripping
Your hands are a personality!
थामते, सहलाते, कस लेते हैं
शक़्श ही तो हैं हाथ तुम्हारे!
They think a lot as they touch
Holding, caressing, gripping
Your hands are a personality!
Wednesday, December 13, 2017
Tuesday, December 12, 2017
Friday, December 8, 2017
बदलाव
बेवक़्त सा लगता है, ऐसे अचानक मौसम का बदलना
ये भी लगता है, शायद वक़्त हो ही गया था बदलने का
मक़ान का जो रास्ता है, क्या वो अब घर को जाएगा ?
It feels untimely, this sudden change of the weather
Yet it feels that it's indeed high time that it changed
That road to the house, will it now lead to a home?
ये भी लगता है, शायद वक़्त हो ही गया था बदलने का
मक़ान का जो रास्ता है, क्या वो अब घर को जाएगा ?
It feels untimely, this sudden change of the weather
Yet it feels that it's indeed high time that it changed
That road to the house, will it now lead to a home?
Friday, November 24, 2017
सही-ग़लत
कहते हैं मयख़ानों के प्यालों में ग़म ग़लत होते हैं
सोचता हूँ कभी, क्या कुछ ग़म शायद सही होते हैं
सज़ा सी लगती है यह जो ख़ला किस ग़लती की है?
मयख़ाना- a bar/pub
ग़म ग़लत करना- a Hindustaani expression meaning 'to try and reduce/overcome sadness/grief'
ख़ला- vacuum/void; used here in the context of loneliness after the beloved has left.
सोचता हूँ कभी, क्या कुछ ग़म शायद सही होते हैं
सज़ा सी लगती है यह जो ख़ला किस ग़लती की है?
मयख़ाना- a bar/pub
ग़म ग़लत करना- a Hindustaani expression meaning 'to try and reduce/overcome sadness/grief'
ख़ला- vacuum/void; used here in the context of loneliness after the beloved has left.
Monday, November 20, 2017
मरासिम
कुछ बयाँ को लफ़्ज़ों की मोहताजी नहीं होती
कुछ लफ्ज़ बिना बयाँ के, तनहा छूट जाते हैं
मरासिम आँखें थीं, मैं जाने क्यों लिखता था।
Some expressions have no dependence for words,
Some words are left lonely finding no expression,
Connection was of the eyes, wonder why I wrote.
मरासिम- relations or connection.
Some poetic liberty has been taken with the syntax here.
कुछ लफ्ज़ बिना बयाँ के, तनहा छूट जाते हैं
मरासिम आँखें थीं, मैं जाने क्यों लिखता था।
Some expressions have no dependence for words,
Some words are left lonely finding no expression,
Connection was of the eyes, wonder why I wrote.
मरासिम- relations or connection.
Some poetic liberty has been taken with the syntax here.
Thursday, November 16, 2017
ख़्वाहिश
ख़ुदकुशी का तो रत्ती भर भी ख़याल नहीं रहता है मगर
बस यूँ ही ग़ुज़र जाने की ख़्वाहिश पल पल रहा करती है
जब, जहाँ, जैसी भी हो आखिरी साँस, बस अकेले न हो।
Not even a drift of a thought about suicide ever does occur but
The desire to simply pass away, remains moment after moment
Whenever, wherever, however be the last breath, just not alone.
Sunday, November 12, 2017
खाली
बिलकुल खाली हैं आँखें, टटोलो तो नींद भी नहीं
चुभते रेतीले लम्हों का सहरा है आँसुओं के बिना
जाने कब आओगी मेरे मकान पर कि वो घर बने।
Absolutely empty the eyes, not even sleep to be found,
A desert of piercing sandy moments without any tears,
Wonder when you'd come to my house; make it home.
चुभते रेतीले लम्हों का सहरा है आँसुओं के बिना
जाने कब आओगी मेरे मकान पर कि वो घर बने।
Absolutely empty the eyes, not even sleep to be found,
A desert of piercing sandy moments without any tears,
Wonder when you'd come to my house; make it home.
Monday, October 23, 2017
सुनोगी?
दवाओं की गोद में सर रखा था आधी नींद में, बेचैन
अधहोश हाल में क़लम, क़ाग़ज़ और फोन समेटा था
इक नज़्म लिखी है तुम सी मैंने, ग़र पढ़ूँ तो सुनोगी?
My head rested restless, half asleep in the lap of my medicines
In a semi conscious state, I gathered my pen, paper and phone
Have written a poem just like you; would you listen if I read it?
Sunday, October 22, 2017
बरसाती ज़ुबाँ
किस ज़ुबाँ में गाती है वो, जाने क्या मायने हैं अलफ़ाज़ों के
समझता हूँ फिर भी, ग़र पूछो मुझ से तो समझा न पाऊँगा
सब्ज़ पत्तों पर बरसात सी सुनाई पड़ती हो, जब बोलती हो।
What's the language of the rain's song, what do her words mean?
I understand it all; but if one asks I will never be able to explain;
Soft raindrops upon tender green leaves, the sound of your voice.
Friday, October 20, 2017
महरूम
माज़ी ठुड्डे मार रहा है, रूह अब छलके कब छलके
है ज़हन महरूम मगर आज लफ्ज़ ओ अल्फ़ाज़ों से
याद हैं वो रातें जब ख़ामोश ही बातें किया करते थे ?
~ ~ ~
The past keeps kicking, the spirit just might brim over,
Consciousness however, is bereft of every word today,
Remember, the nights when we'd converse in silences?
Thursday, October 19, 2017
जश्न-ए-रौशनी
Namaste,
माटी की अंजुली में टिमटिमाएँगे आसमाँ के तारे
और ज़मीं के शहाब-ए-साक़ीबों से रौशन आसमाँ
जश्न-ए-रौशनी की दिली मुबारक़बाद है दुआ में।
और ज़मीं के शहाब-ए-साक़ीबों से रौशन आसमाँ
जश्न-ए-रौशनी की दिली मुबारक़बाद है दुआ में।
In cupped earthen palms, will flicker the heavenly stars
And meteors from the earth will illuminate the heavens
Warmest of wishes in prayers for the Festival of Lights.
शहाब-ए-साक़ीब- meteor
And meteors from the earth will illuminate the heavens
Warmest of wishes in prayers for the Festival of Lights.
.
Monday, October 16, 2017
फ़र्क
हर्फ़ भर के फ़र्क से वह रूहानियत हो जाती है
म से होता है सिर्फ़ मैं, मगर ह से होते हैं हम।
*An English translation of this is yet impossible for me to do, this being very language and script specific. I will however keep attempting to best represent it in English as well. Someday perhaps!!
ऊंघ
देर साथ बैठे बैठे, मेरे काँधे पर नींद आ गई थी
चौंककर फिर जागी भी थी, पर सर हटाया नहीं
मिले तो कई बार थे हम, मुलाक़ात आज हुई थी।
Sitting besides me for long she'd dozed off on my shoulder,
Then with a start had awakened too, but let her head rest,
We'd had many meets before, only today had we truly met.
चौंककर फिर जागी भी थी, पर सर हटाया नहीं
मिले तो कई बार थे हम, मुलाक़ात आज हुई थी।
Sitting besides me for long she'd dozed off on my shoulder,
Then with a start had awakened too, but let her head rest,
We'd had many meets before, only today had we truly met.
Thursday, October 12, 2017
सुकूँ
रौशनी यूँ छुपा रही है चाँद को अलसाई भोर में
जैसे रेशमी धूप का दुशाला उढ़ाए सुला रही हो
बजाए जगाने के तुम्हे, निहारता रह जाता हूँ।
The light so hides the moon during the lazy dawn,
As if tucking her to sleep under a silken sunshine,
It's time to wake you up but all I do is behold you.
जैसे रेशमी धूप का दुशाला उढ़ाए सुला रही हो
बजाए जगाने के तुम्हे, निहारता रह जाता हूँ।
The light so hides the moon during the lazy dawn,
As if tucking her to sleep under a silken sunshine,
It's time to wake you up but all I do is behold you.
Friday, October 6, 2017
बूढ़ा साज़
हाँफते छिले कटे रेंगते सुर निकलते थे बुज़ुर्ग तारों के
बूढ़ा साज़ है, साज़िन्दा आख़िर करे भी तो कितना करे
सिक्कों से साँसें हैं, जो जल्द किसी रोज़ ख़र्च हो जाएँगे।
Panting, scraped, cut and crawling notes of old strings,
An aged instrument, how much could the artist truly do,
My breaths are owed to coins, soon to be all but spent.
बूढ़ा साज़ है, साज़िन्दा आख़िर करे भी तो कितना करे
सिक्कों से साँसें हैं, जो जल्द किसी रोज़ ख़र्च हो जाएँगे।
Panting, scraped, cut and crawling notes of old strings,
An aged instrument, how much could the artist truly do,
My breaths are owed to coins, soon to be all but spent.
ज़र्द चाँद
इक दूजे के लब सिल गए थे साँसों की रेशमी डोरों में ऐसे
धड़कनों की पहचानें पिघल गयीं थीं क़ायनाती क़रीबी से
नज़रभर देखो, आज रात भी वही चाँद टंगा है आसमां में।
The lips were sewn to each other with silken threads of their breaths,
धड़कनों की पहचानें पिघल गयीं थीं क़ायनाती क़रीबी से
नज़रभर देखो, आज रात भी वही चाँद टंगा है आसमां में।
The lips were sewn to each other with silken threads of their breaths,
Heartbeats melted to forget their own selves in their cosmic intimacy,
It's that same golden moon tonight, hanging luminous in the night sky.
ज़र्द- yellow or golden; the latter in this piece.
ज़र्द- yellow or golden; the latter in this piece.
Wednesday, October 4, 2017
डाक
स्क्रीन के हर्फों की क्या ख़ुशबू
और क्या उनकी सियाही कोई
कबसे माँग रहा हूँ पता तुम्हारा।
What scent do screen alphabets possess,
What ink can they hope to be written in,
Long have I been seeking your address.
और क्या उनकी सियाही कोई
कबसे माँग रहा हूँ पता तुम्हारा।
What scent do screen alphabets possess,
What ink can they hope to be written in,
Long have I been seeking your address.
Thursday, September 21, 2017
बनाम
वक़्फ़े भर की ग़ुज़र या
ग़ुज़र में वक़्फ़ा भर इक
वक़्त बनाम ज़िन्दगी।
Mere passing within the pause or
A mere pause within the passing;
The question of time vs human life.
ग़ुज़र में वक़्फ़ा भर इक
वक़्त बनाम ज़िन्दगी।
Mere passing within the pause or
A mere pause within the passing;
The question of time vs human life.
Thursday, September 14, 2017
बीत
हो ग़ुज़रे अँधेरों का सुलगता भूत
या नमक भीगे माज़ी की सर्द रूह
वक़्त क्यों कुछ साथ, नहीं छोड़ता?
Smouldering ghost of the darkness past,
Or that tear steeped spirit of the bygone,
Why even time can't relinquish some ties?
या नमक भीगे माज़ी की सर्द रूह
वक़्त क्यों कुछ साथ, नहीं छोड़ता?
Smouldering ghost of the darkness past,
Or that tear steeped spirit of the bygone,
Why even time can't relinquish some ties?
Saturday, September 9, 2017
शायद
बाहर बदल रहे हैं मौसम,
क़ायनात हमेशा की तरह
सुबह-शाम सी जल बुझ रही है।
गैर इंतजारी की आमद के
इंतज़ार को गुज़ारते हुए
अपनी पुरानी सूखी नज़्मों से
मैं बारिशें ढूँढ-ढूँढ बटोर कर
वाइन की इक खाली बोतल में
उनके लफ़्ज़ निचोड़ कर मैंने
कतरा कतरा भर लिया है।
तुम्हारी बसंती साढ़ी के सीए
मलमली महीन पर्दों वाली
खिड़की की इक जानिब वो
तुम्हारा मौसमी हरे रंग का
कुशन दीवार से टेक लगाए
चटाई पर सुस्ता रहा है।
ठीक उसके बगल में मेरा कुशन
काला, हर रोज़ कल की राह देखता है।
तुम्हारे पीले रंग के कॉफ़ी मग के
साथ टूटी हैंडल का मेरा नीला कप,
इक स्टील की ट्रे पर उस
वाइन की बोतल के साथ
किरदार सा सजा है
के पर्दा अब उठे-तब उठे।
हलक बंजर धूल सा हो चला है,
जाने कब कोई तूफ़ान सब कुछ
अपनी आग़ोश में उड़ा ले जाए।
तुम आओ तो साथ एक एक
अलफ़ाज़ी बरसातों के जाम छलकें
दो साँसों से मक़ान का मौसम बदले,
दीवारों के इंतज़ार पर आखिर कर
मुट्ठी भर बूंदों में शायद घर फिर बरसे।
क़ायनात हमेशा की तरह
सुबह-शाम सी जल बुझ रही है।
गैर इंतजारी की आमद के
इंतज़ार को गुज़ारते हुए
अपनी पुरानी सूखी नज़्मों से
मैं बारिशें ढूँढ-ढूँढ बटोर कर
वाइन की इक खाली बोतल में
उनके लफ़्ज़ निचोड़ कर मैंने
कतरा कतरा भर लिया है।
तुम्हारी बसंती साढ़ी के सीए
मलमली महीन पर्दों वाली
खिड़की की इक जानिब वो
तुम्हारा मौसमी हरे रंग का
कुशन दीवार से टेक लगाए
चटाई पर सुस्ता रहा है।
ठीक उसके बगल में मेरा कुशन
काला, हर रोज़ कल की राह देखता है।
तुम्हारे पीले रंग के कॉफ़ी मग के
साथ टूटी हैंडल का मेरा नीला कप,
इक स्टील की ट्रे पर उस
वाइन की बोतल के साथ
किरदार सा सजा है
के पर्दा अब उठे-तब उठे।
हलक बंजर धूल सा हो चला है,
जाने कब कोई तूफ़ान सब कुछ
अपनी आग़ोश में उड़ा ले जाए।
तुम आओ तो साथ एक एक
अलफ़ाज़ी बरसातों के जाम छलकें
दो साँसों से मक़ान का मौसम बदले,
दीवारों के इंतज़ार पर आखिर कर
मुट्ठी भर बूंदों में शायद घर फिर बरसे।
Monday, August 21, 2017
चाह
और कुछ भी न रहा चाहने के लिए
यूँ खुलकर कहूँ अगर तो झूठ होगा
यक़ीं के झाँसे में यक़ीं की चाहत है।
It will be a lie if I say it out aloud,
I wish to believe, in make believe.
Thursday, August 17, 2017
नाव
अकेलापन खोजती रहती है हमेशा सरे आम भी वो
वक़्त बेवक़्त रिसती-छलक पड़ती रेंगती खारी बूँद
तुम्हारी यादें नाव सी डोलती रहती हैं आँखों में मेरी।
Ever seeking solitude, even when with company, that
Time-untimely, seeping-spilling crawling saline drop,
Your memories're boats adrift, in my brimming eyes.
वक़्त बेवक़्त रिसती-छलक पड़ती रेंगती खारी बूँद
तुम्हारी यादें नाव सी डोलती रहती हैं आँखों में मेरी।
Ever seeking solitude, even when with company, that
Time-untimely, seeping-spilling crawling saline drop,
Your memories're boats adrift, in my brimming eyes.
Monday, August 7, 2017
बज़्म
है ज़र्द ए सफ़हे सियाही
है वीरान बज़्म ए नज़्म
ख़त जो तुम्हे भेजे नहीं।
Yellowing are the inked pages,
A desolate company of verses,
Those letters never sent to you.
ज़र्द- yellowed/aged; सफ़हे-pages; बज़्म- company/gathering/mehfil
है वीरान बज़्म ए नज़्म
ख़त जो तुम्हे भेजे नहीं।
Yellowing are the inked pages,
A desolate company of verses,
Those letters never sent to you.
ज़र्द- yellowed/aged; सफ़हे-pages; बज़्म- company/gathering/mehfil
Wednesday, August 2, 2017
तिल
देर रातों की चाँदनी में लिपटे दो जिस्म
उँगलियाँ छूंती-तराशती, देखतीं-जानतीं
निछली कमर पर तुम्हारे, राई सा तिल।
Two bodies bathed in late nights' moonlight,
As the fingers feel, carve, see and recognize,
The tiny little mole in the small of your back.
उँगलियाँ छूंती-तराशती, देखतीं-जानतीं
निछली कमर पर तुम्हारे, राई सा तिल।
Two bodies bathed in late nights' moonlight,
As the fingers feel, carve, see and recognize,
The tiny little mole in the small of your back.
Saturday, July 29, 2017
क़ैफ़ी
आवारा पन्नों में बसती हुईं
जैसे, चंद बाग़ी क़ैफ़ी नज़्में
महज़ लफ़्ज़ों के परे हो तुम।
Living within vagabond pages,
Few high-spirited rebel verses,
You're one beyond mere words.
क़ैफ़ी- of high spirits
जैसे, चंद बाग़ी क़ैफ़ी नज़्में
महज़ लफ़्ज़ों के परे हो तुम।
Living within vagabond pages,
Few high-spirited rebel verses,
You're one beyond mere words.
क़ैफ़ी- of high spirits
Tuesday, July 25, 2017
कश्मकश
क्यों सही
क्यों नहीं
ज़िन्दगी!
Why so
Why no
Living!
क्यों नहीं
ज़िन्दगी!
Why so
Why no
Living!
Monday, July 17, 2017
सूरत
कम ही देखी है मगर जब भी सूरत निकली है ऐसी
नज़र भर कर देखी है, बिंदिया सजी सूरत तुम्हारी
आओ सजा दूँ माथे पर तुम्हारे, रात का पूरा चाँद।
Rarely have I seen, but whenever it has so happened,
I've gazed my content upon your bindi adorned face,
Come, let me grace your temple with this full moon.
नज़र भर कर देखी है, बिंदिया सजी सूरत तुम्हारी
आओ सजा दूँ माथे पर तुम्हारे, रात का पूरा चाँद।
Rarely have I seen, but whenever it has so happened,
I've gazed my content upon your bindi adorned face,
Come, let me grace your temple with this full moon.
Friday, June 30, 2017
लापता
क्या सुनता है कोई; ये किसके लिए लिखता हूँ
क्या मायने बचे हैं कोई इन चुने हुए लफ़्ज़ों के
सुना है, उम्मीद की डोर अक़्सर दिखती नहीं।
Does anyone listen; whom do I still write for,
Do meanings still exist in these picked words,
The thread of hope is often invisible, I hear.
क्या मायने बचे हैं कोई इन चुने हुए लफ़्ज़ों के
सुना है, उम्मीद की डोर अक़्सर दिखती नहीं।
Does anyone listen; whom do I still write for,
Do meanings still exist in these picked words,
The thread of hope is often invisible, I hear.
Wednesday, June 28, 2017
अर्सा
ज़हन में ज़हीन कुछ भी नहीं
ख़ाली तरकश, ढीली कमान
इक अर्सा हो गया तुम्हे लिखे।
Nothing of worth in the mind,
Empty quiver, a warped bow,
Longtime, since I wrote to You.
ख़ाली तरकश, ढीली कमान
इक अर्सा हो गया तुम्हे लिखे।
Nothing of worth in the mind,
Empty quiver, a warped bow,
Longtime, since I wrote to You.
Wednesday, June 14, 2017
सतरंगी
बरसात में धुली जैसे, नम मद्धम सी धूप
घरों के छतों पर टेक लगाए एक इंद्रधनुष
सतरंगी साड़ी पहनी थी तुमने उस रोज़।
Rain washed sun's moist cozy light,
Resting on the rooftops, a rainbow,
You wore your spectral sari that day.
घरों के छतों पर टेक लगाए एक इंद्रधनुष
सतरंगी साड़ी पहनी थी तुमने उस रोज़।
Rain washed sun's moist cozy light,
Resting on the rooftops, a rainbow,
You wore your spectral sari that day.
Saturday, May 27, 2017
पोर्सिलेन
कदम बादल
गोरे नाज़ुक
तुम्हारे पाँव।
Cloud step,
Dainty fair,
Your feet.
गोरे नाज़ुक
तुम्हारे पाँव।
Cloud step,
Dainty fair,
Your feet.
Thursday, April 27, 2017
क़ायम
कुनकुनी आँह
गहराई रौशनी
तुम्हारी नज़र।
Warm sigh,
Deep light,
Your gaze.
गहराई रौशनी
तुम्हारी नज़र।
Deep light,
Your gaze.
Tuesday, April 25, 2017
सुनना
सब्र अक्लमन्दी
अलेहदा सनक
तुम्हारा बोलना।
Steady wisdom,
Eloquent quirky,
Your speaking.
अलेहदा सनक
तुम्हारा बोलना।
Steady wisdom,
Eloquent quirky,
Your speaking.
Wednesday, April 12, 2017
सफर
सफ़हे गुज़रते जा रहें हैं
ज़िंदगियाँ पलटतीं जा रही हैं।
सुफैद बर्फ़ से पल गिर रहे हैं परतों में
वक़्त बजाए ग़ुज़रने के यहाँ से
यहीं ठंडा जमता जा रहा है।
क़दमों को इंतज़ार है उफ़क़ का
ज़र्द आँखों से सूखी नींद बह रही है।
अर्सा इक हो गया है यहाँ पानी को बरसे
हवा पुरानी उन टहनियों में उलझ कर रह गयी है।
चाँद की चाँदी पर वैसे ही चमकती है
जैसे सूरज रोज़ गर्म रौशन होता है।
दिन मगर गलत पतों पे पहुँचते हैं,
और रातों के मोड़ छूटते रहते हैं।
आवाज़ों की पुकार सी सुनाई तो पड़ती है,
ज़ुबाँ पर उनकी, और समझ नहीं आती।
महसूस की छुअन सुन पड़ रही है,
नसें थक हार कर अब सोने जा रहीं हैं।
जिन हाथों के ख़याल को अब तक था थामा
उन्हें उँगलियाँ अब उतारने ने लगीं हैं।
जिन आँखों को नज़रों से यूँ तो कभी न छुंआ
जाने क्यों उनका चेहरा नज़र आ रहा है।
सफ़हे सा जो शुरू हुआ था कोरा
झुर्रियों में मुड़ा वो क़ाग़ज़
सियाही में डूब जाने को चला जा रहा है।
ज़िंदगियाँ पलटतीं जा रही हैं।
सुफैद बर्फ़ से पल गिर रहे हैं परतों में
वक़्त बजाए ग़ुज़रने के यहाँ से
यहीं ठंडा जमता जा रहा है।
क़दमों को इंतज़ार है उफ़क़ का
ज़र्द आँखों से सूखी नींद बह रही है।
अर्सा इक हो गया है यहाँ पानी को बरसे
हवा पुरानी उन टहनियों में उलझ कर रह गयी है।
चाँद की चाँदी पर वैसे ही चमकती है
जैसे सूरज रोज़ गर्म रौशन होता है।
दिन मगर गलत पतों पे पहुँचते हैं,
और रातों के मोड़ छूटते रहते हैं।
आवाज़ों की पुकार सी सुनाई तो पड़ती है,
ज़ुबाँ पर उनकी, और समझ नहीं आती।
महसूस की छुअन सुन पड़ रही है,
नसें थक हार कर अब सोने जा रहीं हैं।
जिन हाथों के ख़याल को अब तक था थामा
उन्हें उँगलियाँ अब उतारने ने लगीं हैं।
जिन आँखों को नज़रों से यूँ तो कभी न छुंआ
जाने क्यों उनका चेहरा नज़र आ रहा है।
सफ़हे सा जो शुरू हुआ था कोरा
झुर्रियों में मुड़ा वो क़ाग़ज़
सियाही में डूब जाने को चला जा रहा है।
सफ़हे- Pages; उफ़क़- Horizon; ज़र्द- Yellow/Yellowed
Friday, April 7, 2017
बरक़रार
कुनकुने यक़ीं
मुलायम वादे
तुम्हारे हाथ।
Soft promise,
Your hands.
Monday, April 3, 2017
चाँदी
शायद चाँद में डुबो कर बिखेर दिए थे शरारत में उन्हें
या कोरे क़ाग़ज़ को छूकर उन से ग़ुज़ारी थी उँगलियाँ
देखो तो, तब से कितनी चाँदी आ गई है बालों में मेरे।
Tousled it playfully, after dipping them in a full moon,
Ran your fingers through having touched blank paper,
See, how much silver's been shining in my hair since.
या कोरे क़ाग़ज़ को छूकर उन से ग़ुज़ारी थी उँगलियाँ
देखो तो, तब से कितनी चाँदी आ गई है बालों में मेरे।
Tousled it playfully, after dipping them in a full moon,
Ran your fingers through having touched blank paper,
See, how much silver's been shining in my hair since.
Sunday, April 2, 2017
ओट
रेशम सी लहरें
वो सियाह लटें
तुम्हारी ज़ुल्फ़ें।
Ink locks,
Your hair.
Monday, March 27, 2017
गिरफ़्त
लजाती भोर
धड़कता रंग
धड़कता रंग
तुम्हरी शर्म।
Hued thrill
Your blush.
Thursday, March 23, 2017
क़ायम
ख़ालिस भरोसा
मुन्तज़िर शोला
तुम्हारी छुअन।
Pure belief,
Waiting fire,
Your touch.
मुन्तज़िर शोला
तुम्हारी छुअन।
Pure belief,
Waiting fire,
Your touch.
Tuesday, March 21, 2017
कलियाँ
रूहानी छुअन
मासूमी सुर्ख़
तुम्हारे होंठ।
Spirit touch
Tender red
Your lips.
मासूमी सुर्ख़
तुम्हारे होंठ।
Spirit touch
Tender red
Your lips.
Wednesday, March 15, 2017
मीठी
शबनमी मासूम
है शहद सुनहरी
आवाज़ तुम्हारी।
Chaste dew,
Honey gold,
Your voice.
है शहद सुनहरी
आवाज़ तुम्हारी।
Chaste dew,
Honey gold,
Your voice.
Saturday, March 11, 2017
गहरी
काली झील
सियाह रात
तेरी आँखें।
Black lake,
Inky night,
Your eyes.
सियाह रात
तेरी आँखें।
Black lake,
Inky night,
Your eyes.
Sunday, March 5, 2017
पोशीदा
सतह अब भी काँच सी सपाट है
गहराइयाँ भी उस रोज़ से, बाँझ
पोशीदा लहरों सी हैं कुछ यादें।
Surface still, as still as glass
Depths since, remain barren
Memories're invisible ripples.
गहराइयाँ भी उस रोज़ से, बाँझ
पोशीदा लहरों सी हैं कुछ यादें।
Surface still, as still as glass
Depths since, remain barren
Memories're invisible ripples.
Tuesday, January 31, 2017
रिहाई
हर गुज़रते पल के साथ, घटती है उम्र
हर साँस एक सलाख और जोड़ देती है
कब जिस्म रूह की कैद से रिहा होगा?
Every passing moment deducts from the age,
Every intake of breath adds a bar to the cell,
When'd the body be free of the soul's prison?
हर साँस एक सलाख और जोड़ देती है
कब जिस्म रूह की कैद से रिहा होगा?
Every passing moment deducts from the age,
Every intake of breath adds a bar to the cell,
When'd the body be free of the soul's prison?
Friday, January 20, 2017
फ़ासला
जो मुक़्क़मल हो तो ख़ुशी से छलक जाते हैं
ग़र नाक़ामयाब तो सब्र तोड़कर बह जाते हैं
हर्फ़ भर का फ़ासला है इश्क़ और अश्क़ में।
ग़र नाक़ामयाब तो सब्र तोड़कर बह जाते हैं
हर्फ़ भर का फ़ासला है इश्क़ और अश्क़ में।
हावी
कई ऐब हैं, हैं ख़ामियाँ भी चंद बड़ी-छोटी
और फितरत पर भी फितूर हावी रहता है
कुदरत ने मुझे जाने किसके लिए चुना है?
Have vices a lot, many shortcomings too big and small
Even my nature is eclipsed by my quirks, eccentricities
Wonder whom will this Cosmos choose me for finally?
और फितरत पर भी फितूर हावी रहता है
कुदरत ने मुझे जाने किसके लिए चुना है?
Have vices a lot, many shortcomings too big and small
Even my nature is eclipsed by my quirks, eccentricities
Wonder whom will this Cosmos choose me for finally?
Thursday, January 19, 2017
वफ़ा
दोनों सिरों से खिंचते-खिंचते तार तार हो गई है रस्सी
खुद से वफ़ा ख़ुदग़र्ज़ी लगती है, अपनों से वफ़ा धोख़ा
क्यों बाँध रखा है साँसों ने इस थके जिस्म-ओ-ज़हन को?
Pulled apart from either ends, the rope is all threadbare
True to self feels selfish, true to well wishers a betrayal
Why do the breaths still hold back this tired body & soul?
खुद से वफ़ा ख़ुदग़र्ज़ी लगती है, अपनों से वफ़ा धोख़ा
क्यों बाँध रखा है साँसों ने इस थके जिस्म-ओ-ज़हन को?
Pulled apart from either ends, the rope is all threadbare
True to self feels selfish, true to well wishers a betrayal
Why do the breaths still hold back this tired body & soul?
कुछ भी नहीं
ऐसा कुछ भी नहीं जिसे छूँ लूँ, जो नज़र आए
जिस्म को उनके होने का, फिर भी एहसास है
क्यों मेरा वुजूद तुम्हारे ख़याल से ख़ाली नहीं?
Nothing which I can touch, nor anything visible,
My being nevertheless, still feels their presence,
Why my existence isn't empty of Your thoughts?
जिस्म को उनके होने का, फिर भी एहसास है
क्यों मेरा वुजूद तुम्हारे ख़याल से ख़ाली नहीं?
Nothing which I can touch, nor anything visible,
My being nevertheless, still feels their presence,
Why my existence isn't empty of Your thoughts?
Wednesday, January 4, 2017
गैरहाज़िरी
सियाही को नज़्मों की ज़िद है
क़ाग़ज़ को दास्ताँ का इंतज़ार
तुम्हारे न रहते, सब कोरा है।
The ink insists upon verses,
The paper waits for stories,
In your absence, all's blank.
क़ाग़ज़ को दास्ताँ का इंतज़ार
तुम्हारे न रहते, सब कोरा है।
The ink insists upon verses,
The paper waits for stories,
In your absence, all's blank.
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