ज़िन्दगी डूबती गयी मय में कतरा-कतरा,
इतना के वो बेहोश ही होश में होता है.
कोई टोके तो रूखी हँसी में जवाब देता है-
"अब क्या टोकते हो यारों, ये घूँट-घूँट भरता
पैमाना अब बस छलकने को ही है."
इतना के वो बेहोश ही होश में होता है.
कोई टोके तो रूखी हँसी में जवाब देता है-
"अब क्या टोकते हो यारों, ये घूँट-घूँट भरता
पैमाना अब बस छलकने को ही है."
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