Friday, December 30, 2011
दरख़्त पुराना
इक दरख़्त पुराना हूँ
मेरे पत्ते भी बूढ़े से हैं.
कड़ी धुप में खड़ा हूँ,
मेरी छाओं में लोग,
मगर अब भी बैठते हैं.
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