पथरीले वक़्त से टूट टूट के
लम्हों की रेत बिखर रही है.
चाहे जितनी कोशिश कर लें
मुट्ठी में रेत पर, नहीं रूकती.
बस चंद कतरे कभी कभी
हथेली पे चिपक से जाते हैं.
इन यादों के कतरों को मैं
सहेज, जोड़ लिया करता हूँ.
कतरा कतरा जुड़ एक दिन
शायद वो एक वक़्त बन जाएँ.
लम्हों की रेत बिखर रही है.
चाहे जितनी कोशिश कर लें
मुट्ठी में रेत पर, नहीं रूकती.
बस चंद कतरे कभी कभी
हथेली पे चिपक से जाते हैं.
इन यादों के कतरों को मैं
सहेज, जोड़ लिया करता हूँ.
कतरा कतरा जुड़ एक दिन
शायद वो एक वक़्त बन जाएँ.
Dopahar tk bik gya bazaar ka har 1 jhoot.... Aur mein 1 sach lekar shaam tk baitha raha....
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